Wednesday, March 16, 2016

मानसिक प्रक्रिया, ज्ञान, तंत्रिका तंत्र, इन्द्रियबोध

अपने वातावरण के बारे में इन्द्रियों द्वारा मिली जानकारी को संगठित करके उस से ज्ञान और अपनी स्थिति के बारे में जागरूकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को अवगमया प्रत्यक्षण (perception) कहते हैं।[1] बोध तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) में संकेतों के बहाव से पैदा होता है और यह संकेत स्वयं इन्द्रियों पर होने वाले किसी प्रभाव से पैदा होते हैं। उदहारण के लिए, आँखों के दृष्टि पटल (रॅटिना) पर प्रकाश पड़ने से दृश्य का बोध उत्पन्न होता है, नाक में गंध-धारी अणुओं के प्रवेश से गंध का बोध उत्पन्न होता है और कान के पर्दों पर हवा में चलती हुई दबाव तरंगों के थपेड़ों से ध्वनि का बोध होता है।[2] लेकिन बोध सिर्फ इन बाहरी संकेतों के मिलना का सीधा-साधा नतीजा नहीं है, बल्कि इसमें स्मृति, आशा और अतीत की सीखों का भी बहुत बड़ा हाथ होता है।
संवेद या इन्द्रियबोध (sense) उन शारीरिक क्षमताओं को कहते हैं जिनसे प्राप्त हुए ज्ञान से किसी जीव को अपने वातावरण का बोध होता है। मनुष्यों में पाँच प्रमुख संवेदी अंग (इन्द्रियाँ) हैं- देखना (आँखों से), सुनना (कानों से), छूना (त्वचा से), सूंघना (नाक से) और स्वाद लेना (जीभ से)। किन्तु मनुष्य में इनके अलावा भी बहुत से संवेदों को ग्रहण करने की क्षमता होती है, जैसे ताप आदि। अन्य जानवरों में अलग इन्द्रियबोध होते हैं, जिसे की कुछ मछलियों में पानी के दबाव के लिए इन्द्रियाँ होती है जिनसे वे आराम से बता पाती हैं के आसपास कोई अन्य मछली हिल रही है के नहीं। कुछ अन्य जानवर पानी में विद्युत् या चुम्बकीय क्षेत्रों में परिवर्तन को भांप लेते हैं - या शिकार करने के लिए बहुत लाभकारी होती है क्योंकि हर अन्य जीव अपने आसपास विद्युत् क्षेत्र पर प्रभाव डालता है।

संवेद और अवगम में अंतर

जैसे ही इन्द्रियाँ अपने वातावरण में किसी चीज के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लेती हैं, उस वस्तु का शारीरिक रूप से "इन्द्रियबोध" हो जाता है। अभी मस्तिष्क ने इसका अर्थ नहीं निकाला होता। मस्तिष्क की कुछ ऐसी चोटें और रोग होतें हैं जिनमें किसी व्यक्ति को चीजें तो दिखती हैं लेकिन उनका बोध नहीं हो पाता। "विज़ुअल ऐग्नोज़िया" नाम के रोग में व्यक्ति चीज देखकर उसका विवरण दे सकता है लेकिन उसे पहचानता नहीं, जैसे एक घोड़ा देखकर उसकी सटीक चित्र हाथ से बनाने में सक्षम है लेकिन यह नहीं पहचान पता के यह एक घोड़ा है। कारण यह है कि इन व्यक्तियों में इन्द्रियबोध तो बिलकुल ठीक होता है लेकिन अवगम की प्रक्रिया में कुछ समस्या हुई होती है।
तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System)
जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) कहते हैं। तंत्रिकातंत्र में मस्तिष्क, मेरूरज्जु और इनसे निकलनेवाली तंत्रिकाओं की गणना की जाती है। तन्त्रिका कोशिका, तन्त्रिका तन्त्र की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। तंत्रिका कोशिका एवं इसकी सहायक अन्य कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्त्र के कार्यों को सम्पन्न करती हैं। इससे प्राणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है। पौधों तथा एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा इत्यादि में तन्त्रिका तन्त्र नहीं पाया जाता है। हाइड्राप्लेनेरियातिलचट्टा आदि बहुकोशिकीय प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। मनुष्य में सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है।

तंत्रिकातंत्र के भाग

तंत्रिकातंत्र का वर्गीकरण

स्थिति एवं रचना के आधार पर

तन्त्रिका तन्त्र के दो मुख्य भाग किये जाते हैं-
  • कपालीय तंत्रिकाएँ (Cranial nerves)
  • मेरुरज्जु की तंत्रिकाएँ (Spinal nerves)

कार्यात्मक वर्गीकरण

  • Pyramidal arrangement
  • Extrapyramidal system
मस्तिष्क और मेरूरज्जुकेंद्रीय तंत्रिकातंत्र कहलाते हैं। ये दोनों शरीर के मध्य भाग में स्थित हैं। इनमें वे केंद्र भी स्थित हैं, जहाँ से शरीर के भिन्न भिन्न भागों के संचालन तथा गति करने के लिये आवेग (impulse) जाते हैं तथा वे आवेगी केंद्र भी हैं, जिनमें शरीर के आभ्यंतरंगों तथा अन्य भागों से भी आवेग पहुँचते रहते हैं। दूसरा भाग परिधि तंत्रिकातंत्र (peripheral Nervous System) कहा जाता है। इसमें केवल तंत्रिकाओं का समूह है, जो मेरूरज्जु से निकलकर शरीर के दोनों ओर के अंगों में विस्तृत है। तीसरा आत्मग तंत्रिकातंत्र (Autonomic Nervous System) है, जो मेरूरज्जु के दोनों ओर गंडिकाआं की लंबी श्रंखलाओं के रूप में स्थित है। यहाँ से सूत्र निकलकर शरीर के सब आभ्यंतरांगों में चले जाते हैं और उनके समीप जालिकाएँ (plexus) बनाकर बंगों में फैल जो हैं। यह तंत्र ऐच्छिक नहीं प्रत्युत स्वतंत्र है और शरीर के समस्त मुख्य कार्यो, जैसे रक्तसंचालन, श्वसन, पाचन, मूत्र की उत्पत्ति तथा उत्सर्जन, निस्रावी ग्रंथियों में स्रावों (हॉरमोनों की उत्पत्ति) के निर्माण आदि क संचालन करता है। इसके भी दो विभाग हैं, एक अनुकंपी (sympathetic) और दूसरा परानुकंपी (parasympathetic)।

ज्ञान:- ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज ; संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनंदिन तथा वैज्ञानिक हो सकता है। वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक और सैद्धांतिक वर्गों में विभक्त होता है। इसके अलावा समाज में ज्ञान की मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक तथा अन्य कई अनुभूतियाँ होती हैं। सिद्धांततः सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्थाओं पर मनुष्य के क्रियाकलाप की निर्भरता को प्रकट किये बिना ज्ञान के सार को नहीं समझा जा सकता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। यह तथ्य मनुष्य के बौद्धिक कार्यकलाप की प्रमुखता और आत्मनिर्भर स्वरूप के बारे में आत्मगत-प्रत्ययवादी सिद्धांतों का आधार है।[1]
स्वप्रसारित ज्ञान और केंद्र प्रसारित ज्ञान- स्वप्रसारित ज्ञान अनादि सत्ता है और केंद्र प्रसारित ज्ञान मस्तिस्क से प्रसारित होने वाला ज्ञान है। केंद्र प्रसारित ज्ञान मृत्यु के साथ बीज रूप में स्वप्रसारित ज्ञान में लीन हो जाता है, पुनः सुसुप्ति से स्वप्न और जाग्रत अवस्था की तरह जन्म लेता है। स्व प्रसारित ज्ञान सर्वत्र है। केंद्र प्रसारित ज्ञान देह बद्ध है। केंद्र प्रसारित ज्ञान के कारण अहँकार की सत्ता है। स्व प्रसारित ज्ञान परमात्मतत्त्व है। जिस प्रकार केंद्र प्रसारित ज्ञान देह का भासित ईश्वर है उसी प्रकार स्व प्रसारित ज्ञान सृष्टि का ईश्वर है। स्व प्रसारित ज्ञान का जब एक अंश अपरा (जड़) प्रकृति को स्वीकार कर लेता है तो केंद्र प्रसारित ज्ञान का उदय होता है और वह प्रजापति होकर शरीर का कारण दिखायी देता है। स्व प्रसारित ज्ञान साक्षी रूप में देह में भासित होता है केंद्र प्रसारित ज्ञान कर्ता, भोक्ता के रूप में दिखायी देता है। जब तक स्मृति है तब तक देहस्थ मैं का बोध है और जब स्मृति निरति में विलीन हो जाती है तब स्वरूप स्थिति का बोध होता है जो यथार्थ मैं है। यह ही ब्रह्म बोध है यहाँ वह जानता है ‘अहम् ब्रह्मास्मि’
मानसिक प्रक्रियायेँ (Mental process:-मस्तिष्क द्वारा किये जाने वाले कार्यों को मानसिक प्रक्रियायेँ (Mental process) या मानसिक कार्य (mental function) कहते हैं। मनोविज्ञानव्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
प्रमुख मानसिक प्रक्रियाएं ये हैं- संवेदन (perception), स्मृतिचिन्तन (कल्पना करना, विश्वास, तर्क करना आदि) संकल्प (volition), संवेग (emotion) आदि।

आधारभूत मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ

व्यवहार का अधययन करते समय मनाेवैज्ञानिकाें के लिये उन प्रक्रियाआें काे समझना सबसे महत्वपूर्ण है, जाे सामूहिक रूप से किसी विशेष व्यवहार काे प्रभावित करती हैं। प्रमुख मनाेवैज्ञानिक प्रक्रियाएं निम्नलिखित हैं-
  • संवेदन (Sensation) : संवेदना से तात्पर्य उन विभिन्न उत्तेजनाआें के प्रति हमारी जागरूकता से है जाे हमें विभिन्न संवेदी तंत्रों द्वारा प्राप्त हाेती हैं जैसे, दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, गन्ध तथा स्वाद।
  • अवधान (Attention): अवधान के समय हम उपलब्ध कई उत्तेजनाआें में से किसी एक विशेष उत्तेजना पर चयनात्मक रूप से केन्द्रित हाेते हैं, उदाहरणतः कक्षा में व्याख्यान सुनते समय विद्यार्थी शिक्षक द्वारा बाेले गये शब्दाें काे सुनते हैं तथा कक्षा में उपस्थित अन्य उत्तेजनाआें काे नजरअंदाज करते हैं, जैसे पंखे का शाेर।
  • प्रत्यक्षण (perception): प्रत्यक्षण में हम सूचना काे संसाधित करते हैं और उपलब्ध उत्तेजनाआें का अर्थ निकालते है। उदाहरण के लिये, जब हम किसी पेन काे देखते हैं ताे हम उसे एक लिखने वाली वस्तु के रूप में पहचानते हैं।
  • सीखना (अधिगम) : अनुभव और अभ्यास द्वारा नये ज्ञान और कौशलाें के अर्जन में हमारी सहायता करता है। ये अर्जित ज्ञान और कौशल हमारे व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाते हैं और विभिन्न परिस्थितियाें में समायाेजन करने में हमारी सहायता करते हैं।
  • स्मृति : जाे सूचना हम संसाधित करते हैं और सीखते हैं, वह हमारे स्मृतितन्त्र में धारण हाे जाती है। आवश्यकता पड़ने पर धारित सूचना का पुनराेत्पादन करने में भी स्मृति हमारी सहायता करती है। उदाहरण के लिये, परीक्षा के लिये अधययन करने के पश्चात् प्रश्नपत्र में दिये गये प्रश्नाें के उत्तर लिखना।
  • चिन्तन : चिंतन के अन्तर्गत हम धारण किये गये ज्ञान का विभिन्न समस्याआें के समाधान में प्रयाेग करते हैं। जब भी हमारे सामने काेई समस्या आती है, तब हम अपने मन में, उस समस्या से जुड़े विभिन्न तथ्याें का एक दूसरे से तर्कपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करते हैं और तब समस्या के सम्बन्ध में एक विवेकपूर्ण निर्णय लेते हैं। हम अपने आस-पास घटित विभिन्न घटनाआें का मूल्यांकन भी करते हैं और उसके अनुसार एक धारणा बनाते हैं।

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