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Tuesday, February 16, 2016
Wednesday, February 10, 2016
शिक्षा मनोविज्ञान by Omveer Thalor 9828369702
शिक्षा मनोविज्ञान
शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता
है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक
प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं।
शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएँ :
स्किनर के अनुसार :
शिक्षा
मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का शैक्षणिक परिस्थितियों में अध्ययन करता है।
क्रो एंड क्रो के अनुसार :
शिक्षा
मनोविज्ञान, व्यक्ति
के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करता है।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार :
शिक्षा
मनोविज्ञान व्यावहारिक मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षा में मनोवैज्ञानिक
सिद्धांतो तथा खोजों के प्रयोग के साथ ही शिक्षा की समस्याओं के मनोवैज्ञानिक
अध्यन से सम्बंधित है।
ऐलिस क्रो के अनुसार :
शैक्षिक
मनोविज्ञान मानव प्रतिक्रियाओं के शिक्षण और सीखने को प्रभावित वैज्ञानिक दृष्टि
से व्युत्पन्न सिद्धांतों के अनुप्रयोग का प्रतिनिधित्व करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र
शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र
के बारे में स्किनर ने लिखा हे की शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह सभी ज्ञान
तथा प्रविधियां से सम्बंधित है जो सीखने की प्रक्रिया को अच्छी प्रकार से समझाने
तथा अधिक निपुणता से निर्धारित करने से सम्बंधित हैं। आधुनिक शिक्षा
मनोविज्ञानिकों के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख क्षेत्र निम्न प्रकार है-
1. वंशानुक्रम (Heredity)
2. विकास (Development)
3. व्यक्तिगत
भिन्नता (Individual Differences)
4. व्यक्तित्व
(Personality)
5. विशिष्ट
बालक (Exceptional Child)
6. अधिगम
प्रक्रिया (Learning
Process)
7. पाठ्यक्रम
निर्माण (Curriculum Development)
8. मानसिक
स्वास्थ्य (Mental
Health)
9. शिक्षण
विधियाँ (Teaching Methods)
10. निर्देशन
एवं परामर्श (Guidance
and Counseling)
11. मापन एवं
मूल्यांकन (Measurement
and Evaluation)
12. समूह
गतिशीलता (Group Dynamics)
13. अनुसन्धान
(Research)
14. किशोरावस्था
(Adolescence)
शिक्षा और मनोविज्ञान का संबंध
शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध
सीखने एवं सीखने की विधियों अर्थात पढ़ाने से है। शिक्षा तथा मनोविज्ञान ज्ञान की
दो स्पष्ट शाखाएं है, परंतु इन
दोनो का परस्पर घनिष्ठ संबंध हैं आधुनिक शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है। बच्चे को
उसकी रूचियों, रूझानों, सम्भावनाओं तथा व्यक्तित्व का
ध्यानपूर्वक अध्ययन करके शिक्षा दी जाती है। आज शिक्षा तथा मनोविज्ञान एक दूसरे के
पूरक है। स्किनर का मत है कि ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का एक आवश्यक तत्व है। इसकी सहायता के बिना शिक्षा की गुत्थी सुलझाई नहीं जा
सकती। शिक्षा तथा मनोविज्ञान दोनों का संबंध व्यवहार के साथ है। मनोविज्ञान की
खोजों की शिक्षा के दूसरे पहलुओं पर गहरी छाप है।’’
शिक्षा तथा मनोविज्ञान सिद्धांत
तथा व्यवहार का समन्वय है, शिक्षा
तथा मनोविज्ञान का पारस्परिक संबंध का ज्ञान मानव के समन्वित संतुलित विकास के लिये
आवश्यक है। शिक्षा के समान कार्य, मनोविज्ञान क सिद्धांतों पर आधारित है। क्रो एण्ड क्रो के
अनुसार ‘‘मनोविज्ञान, वातावरण के सम्पर्क में होने
वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान हैं’’ मनोविज्ञान सीखने से संबंधित
मानव विकास की व्याख्या करता है। शिक्षा, सीखने की प्रक्रिया को करने की
चेष्टा प्रदान करती है। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के क्यों और कब से संबंधित है।’’
शिक्षा और मनोविज्ञान को जोड़ने
वाली कड़ी है ‘‘मानव
व्यवहार’’। इस
संबंध में दो विद्वानों के विचार दृष्टव्य है :-
ब्राउन- ‘‘शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके
द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है।’’
पिल्सबरी- ‘‘मनोविज्ञान मानव व्यवहार का
विज्ञान है।’’
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि
शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों का संबंध मानव व्यवहार से है। शिक्षा मानव व्यवहार में
परिवर्तन करके उसे उत्तम बनाती है। मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। इस
प्रकार शिक्षा और मनोविज्ञान के संबंध होना स्वाभाविक है पर इस संबंध में
मनोविज्ञान को आधार प्रदान करता है। शिक्षा को अपने प्रत्येक कार्य के लिए
मनोविज्ञान की स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती है। बी.एन. झा ने ठीक ही लिखा है- ‘‘शिक्षा जो कुछ करती है और जिस
प्रकार वह किया जाता है उसके लिये इसे मनोवैज्ञानिक खोजों पर निर्भर होना पड़ता
है।’’
मनोविज्ञान को यह स्थान इसलिए
प्राप्त हुआ है क्योंकि उसने शिक्षा के सब क्षेत्रों को प्रभावित करके उनमें
क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है। इस संदर्भ में रायन के ये सारगर्भित वाक्य
उल्लेखनीय है-
आधुनिक
समय के अनेक विद्यालयों में हम भिन्नता और संघर्ष का वातावरण पाते है। अब इनमें
परम्परागत, औपचारिकता, मजबूर, मौन, तनाव और
दण्ड की अधिकता दर्शित नहीं होती है।
यह सब शिक्षा मनोविज्ञान के
उपयोग के कारण संभव हुआ है।
मनोविज्ञान का शिक्षा के साथ संबंध
1. मनोविज्ञान
तथा शिक्षा के उद्देश्य - मनोविज्ञान
के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा
सकता है अथवा नहीं। शिक्षक ने अपने उद्देश्य में कितनी सफलता प्राप्त की है यह भी
मनोविज्ञान के द्वारा जाना जा सकता है।
2. मनोविज्ञान
तथा पाठ्यक्रम - मनोविज्ञान
ने बालक के सर्वागींण विकास में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को महत्वपूर्ण बनाया
है। इसीलिये विद्यालयों में खेलकूद, सांस्कृतिक
कार्यक्रम आदि की विषेष रूप से व्यवस्था की जाती है।
3. मनोविज्ञान
तथा पाठ्य पुस्तकें - पाठ्य
पुस्तकों का निर्माण बालक की आयु, रूचियों और मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखकर करना
चाहिये।
4. मनोविज्ञान
तथा समय सारणी - शिक्षा
में मनोविज्ञान द्वारा दिया जाने वाला मुख्य सिद्धान्त है कि नवीन ज्ञान का विकास
पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिये।
5. मनोविज्ञान
तथा शिक्षा विधियां - मनोविज्ञान
के द्वारा षिक्षण विधियों में बालक के स्वयं सीखने पर बल दिया गया। इस उद्देश्य से ‘करके
सीखना’, खेल द्वारा सीखना, रेड़ियो
पर्यटन, चलचित्र आदि को षिक्षण विधियों में स्थान दिया गया।
6. मनोविज्ञान
तथा अनुशासन - मनोविज्ञान
द्वारा प्रेम, प्रषंसा
और सहानुभूति को अनुषासन के लिये एक अच्छा आधार माना है।
7. मनोविज्ञान
तथा अनुसंधान - मनोविज्ञान
ने सीखने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में खोज करके अनेक अच्छे नियम बनायें हैं। इनका
प्रयोग करने से बालक कम समय में और अधिक अच्छी प्रकार से सीख सकता है।
8. मनोविज्ञान
तथा परीक्षायें - मनोविज्ञान
द्वारा बुद्धि परीक्षा, व्यक्तित्व
परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा जैसी नई विधियों को मूल्यांकन के लिये चयनित किया
गया है।
9. मनोविज्ञान
तथा अध्यापक - शिक्षा
में तीन प्रकार के सम्बन्ध होते हैं - बालक तथा
षिक्षक का सम्बन्ध, बालक और समाज
का सम्बन्ध तथा बालक और विषय का सम्बन्ध। शिक्षा में सफलता तभी मिल सकती है जब इन
तीनों का सम्बन्ध उचित हो।
मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान
1. बालक का महत्व
2. बालकों की
विभिन्न अवस्थाओं का महत्व
3. बालकों की
रूचियों व मूल प्रवृत्तियों का महत्व
4. बालकों की
व्यक्तिगत विभिन्नताओं का महत्व
5. पाठ्यक्रम
में सुधार
6. पाठ्यक्रम
सहगामी क्रियाओं पर बल
7. सीखने की
प्रक्रिया में उन्नति
8. मूल्यांकन
की नई विधियां
9. शिक्षा के
उद्देश्य की प्राप्ति व सफलता
10. नये ज्ञान
का आधारपूर्ण ज्ञान
शिक्षा मनोविज्ञान : परिभाषा एवं आवश्यकता
शिक्षा मनोविज्ञान वह विधायक
विज्ञान है जो शिक्षा की समस्याओं का विवेचन विश्लेषण एवं समाधान करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान से कभी पृथक
नहीं रही है। मनोविज्ञान चाहे दर्शन के रूप में रहा हो, उसने शिक्षा के माध्यम से
व्यक्ति का विकास करने में सहायता की है।
शिक्षा मनोविज्ञान के आरंभ के
विषय में लेखकों में कुछ मतभेद है। कोलेसनिक ने इस विज्ञान का आरंभ ईसा पूर्व
पांचवी शताब्दी के यूनानी दार्शनिको से माना है, उनमें प्लेटो को भी स्थान दिया
है।
कोलेसनिक के शब्दों में-‘‘मनोविज्ञान
और शिक्षा के सर्वप्रथम व्यवस्थित सिद्धांतों में एक सिद्धांत प्लेटों का भी था।’’
कोलेसनिक के विपरीत स्किनर ने
शिक्षा मनोविज्ञान का आरंभ प्लेटो के शिष्य अरस्तु के समय से मानते हुए लिखा है
‘‘शिक्षा
मनोविज्ञान का आरंभ अरस्तु के समय से माना जा सकता है। पर शिक्षा मनोविज्ञान की
उत्पत्ति यूरोप में पेस्त्रलाजी, हरबर्ट और फ्राबेल के कार्यों से हुई
जिन्होंने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक बनाने का प्रयास किया।’’ स्किनर के
शब्दोंमें ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान
की वह शाखा है जिसका संबंध पढ़ने व सीखने से है।’’
शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ
शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धांतों का
शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग है।
स्किनर के शब्दों में ‘‘शिक्षा
मनोविज्ञान उन खोजों को शैक्षिक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जो कि विशेषतया
मानव, प्राणियों
के अनुभव और व्यवहार से संबंधित है। ’’शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों के
योग से बना है - ‘शिक्षा’ और मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है -
शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक
रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।
अतः हम स्किनर के शब्दों में कह सकते है
‘‘शिक्षा
मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार संबंधी विज्ञान है, ग्रहण करता है।’’शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ का
विश्लेषण करने के लिए स्किनर ने अधोलिखित तथ्यों की ओर संकेत किया हैः-
1. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र, मानव
व्यवहार है।
2. शिक्षा
मनोविज्ञान खोज और निरीक्षण से प्राप्त किए गए तथ्यों का संग्रह है।
3. शिक्षा
मनोविज्ञान में संग्रहीत ज्ञान को सिद्धांतों का रूप प्रदान किया जा सकता है।
4. शिक्षा
मनोविज्ञान ने शिक्षा की समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी स्वयं की पद्धतियों
का प्रतिपादन किया है।
5. शिक्षा
मनोविज्ञान के सिद्धांत और पद्धतियां शैक्षिक सिद्धांतों और प्रयोगों को आधार
प्रदान करते है।
आवश्यकता
कैली ने
शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता को निम्नानुसार बताया हैः-
1. बालक के
स्वभाव का ज्ञान प्रदान करने हेतु।
2. बालक के
वृद्धि और विकास हेतु।
3. बालक को
अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने के लिए।
4. शिक्षा के
स्वरूप, उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित करना।
5. सीखने और
सिखाने के सिद्धांतों और विधियों से अवगत कराना।
6. संवेगों
के नियंत्रण और शैक्षिक महत्व का अध्ययन।
7. चरित्र
निर्माण की विधियों और सिद्धांतों से अवगत कराना।
8. विद्यालय
में पढ़ाये जाने वाले विषयों में छात्र की योग्यताओं का माप करने की विधियों में
प्रशिक्षण देना।
9. शिक्षा
मनोविज्ञान के तथ्यों और सिद्धांतों की जानकारी के लिए प्रयोग की जाने वाली
वैज्ञानिक विधियों का ज्ञान प्रदान करना।
शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र
विभिन्न
लेखकों ने शिक्षा मनोविज्ञान की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी है। इसलिए शिक्षा
मनोविज्ञान के क्षेत्र के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त शिक्षा मनोवैज्ञानिक एक नया तथा पनपता विज्ञान है। इसके क्षेत्र
अनिश्चित है और धारणाएं गुप्त है। इसके क्षेत्रों में अभी बहुत सी खोज हो रही है
और संभव है कि शिक्षा मनोविज्ञान की नई धारणाएं, नियम और
सिद्धांत प्राप्त हो जाये। इसका भाव यह है कि शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र और
समस्याएं अनिश्चित तथा परिवर्तनशील है। चाहे कुछ भी हो निम्नलिखित क्षेत्र या
समस्याओं को शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य क्षेत्र में शामिल किया जा सकता है। क्रो
एण्ड क्रो- ‘‘शिक्षा
मनोविज्ञान की विषय सामग्री का संबंध सीखने को प्रभावित करने वाली दशाओं से है।’’
1. व्यवहार
की समस्या।
2. व्यक्तिगत
विभिन्नताओं की समस्या।
3. विकास की
अवस्थाएं।
4. बच्चों का
अध्ययन।
5. सीखने की
क्रियाओं का अध्ययन।
6. व्यक्तित्व
तथा बुद्धि।
7. नाप तथा
मूल्यांकन।
8. निर्देश
तथा परामर्श।
शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ
शिक्षा
मनोविज्ञान को व्यवहारिक विज्ञान की श्रेणी में रखा जाने लगा है। विज्ञान होने के
कारण इसके अध्ययन में भी अनेक विधियों का विकास हुआ। ये विधियां वैज्ञानिक हैं। जार्ज ए लुण्डबर्ग के शब्दों में -‘‘सामाजिक
वैज्ञानिकों में यह विश्वास पूर्ण हो गया है कि उनके सामने जो समस्याऐं है उनको हल
करने के लिए सामाजिक घटनाओं के निष्पक्ष एवं व्यवस्थित निरीक्षण, सत्यापन, वर्गीकरण
तथा विश्लेषण का प्रयोग करना होगा। ठोस एवं सफल होने क कारण ऐसे दृष्टिकोण को
वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है।’’शिक्षा मनोविज्ञान में अध्ययन और
अनुसंधान के लिए सामान्य रूप से जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनको दो भागों
में विभाजित किया जासकता हैः-
·
(१) आत्मनिष्ठ विधियाँ (Subjective
Method)
·
गाथा वर्णन विधि
·
(२) वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective Method)
·
प्रयोगात्मक विधि
·
निरीक्षण विधि
·
जीवन इतिहास विधि
·
उपचारात्मक विधि
·
विकासात्मक विधि
·
मनोविश्लेषण विधि
·
तुलनात्मक विधि
·
सांख्यिकी विधि
·
परीक्षण विधि
·
साक्षात्कार विधि
·
प्रश्नावली विधि
·
विभेदात्मक विधि
·
मनोभौतिकी विधि
मनोविज्ञान
के ज्ञान में वृद्धि : डगलस व हालैण्ड के अनुसार - ‘‘मनोविज्ञान ने इस विधि का प्रयोग करके हमारे मनोविज्ञान के
ज्ञान में वृद्धि की है।’’
अन्य
विधियों में सहायक : डगलस व हालैण्ड के अनुसार ‘‘यह विधि
अन्य विधियों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों नियमों और सिद्धांन्तों की व्याख्या
करने में सहायता देती है।’’
यंत्र व
सामग्री की आवश्यकता : रॉस के अनुसार ‘‘यह विधि
खर्चीली नहीं है क्योंकि इसमें किसी विशेष यंत्र या सामग्री की आवश्यकता नहीं
पड़ती है।’’
प्रयोगशाला
की आवश्यकता : यह विधि बहुत सरल है। क्योंकि इसमें किसी
प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है। रॉस के शब्दों में ‘‘मनोवैज्ञानिकों
का स्वयं का मस्तिष्क प्रयोगशाला होता है और क्योंकि वह सदैव उसके साथ रहता है
इसलिए वह अपनी इच्छानुसार कभी भी निरीक्षण कर सकता है।’’
जीवन इतिहास विधि या व्यक्ति अध्ययन विधि (Case
study or case history method) व्यक्ति अध्ययन विधि का प्रयोग
मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानसिक रोगियों, अपराधियों
एवं समाज विरोधी कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिये किया जाता है। ‘‘जीवन
इतिहास द्वारा मानव व्यवहार का अध्ययन।’’ बहुधा
मनोवैज्ञानिक का अनेक प्रकार के व्यक्तियों से पाला पड़ता है। इनमें कोई अपराधी, कोई
मानसिक रोगी, कोई झगडालू, कोई समाज
विरोधी कार्य करने वाला और कोई समस्या बालक होता है। मनोवैज्ञानिक के विचार से
व्यक्ति का भौतिक, पारिवारिक व सामाजिक वातावरण उसमें मानसिक असंतुलन उत्पन्न
कर देता है। जिसके फलस्वरूप वह अवांछनीय व्यवहार करने लगता है। इसका वास्तविक कारण
जानने के लिए वह व्यक्ति के पूर्व इतिहास की कड़ियों को जोड़ता है। इस उद्देश्य से
वह व्यक्ति उसके माता पिता, शिक्षकों, संबंधियों, पड़ोसियों, मित्रों
आदि से भेंट करके पूछताछ करता है। इस प्रकार वह व्यक्ति के वंशानुक्रम, पारिवारिक
और सामाजिक वातावरण, रूचियों, क्रियाओं, शारीरिक
स्वास्थ्य, शैक्षिक और संवेगात्मक विकास के संबंध में तथ्य एकत्र करता
है जिनके फलस्वरूप व्यक्ति मनोविकारों का शिकार बनकर अनुचित आचरण करने लगताहै। इस
प्रकार इस विधि का उद्देश्य व्यक्ति के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारण की खोज
करनाहै। क्रो व क्रो ने लिखा है ‘‘जीवन इतिहास विधि का मुख्य उद्देश्य
किसी कारण का निदान करना है।’’
बहिर्दर्शन या अवलोकन विधि (Extrospection
or observational method) बहिर्दर्शन विधि को अवलोकन या निरीक्षण
विधि भी कहा जाता है। अवलोकन या निरीक्षण का सामान्य अर्थ है- ध्यानपूर्वक देखना। हम किसी के व्यवहारआचरण
एवं क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को बाहर से ध्यानपूर्वक देखकर उसकी
आंतरिक मनःस्थिति का अनुमान लगा सकते है। उदाहरणार्थः- यदि कोई व्यक्ति जोर-जोर से बोल रहा है और उसके नेत्र लाल है तो हम जान सकते है
कि वह क्रुद्ध है। किसी व्यक्ति को हंसता हुआ देखकर उसके खुष
होने का अनुमान लगा सकते हैं।निरीक्षण विधि में निरीक्षणकर्ता, अध्ययन
किये जाने वाले व्यवहार का निरीक्षण करता है और उसी के आधार पर वह विषय के बारे
में अपनी धारणा बनाता है। व्यवहारवादियों ने इस विधि को विशेष महत्व दिया
है।कोलेसनिक के अनुसार निरीक्षण दो प्रकार का होता है-
(1)
औपचारिक और
(2)
अनौपचारिक।
औपचारिक निरीक्षण नियंत्रित दशाओं में
और अनौपचारिक निरीक्षण अनियंत्रित दशाओं में किया जाता है। इनमें से अनौपचारिक
निरीक्षण, शिक्षक के लिये अधिक उपयोगी है। उसे कक्षा और कक्षा के बाहर
अपने छात्रों के व्यवहार का निरीक्षण करने के लिए अनेक अवसर प्राप्त होते है। वह
इस निरीक्षण के आधार पर उनके व्यवहार के प्रतिमानो का ज्ञान प्राप्त करके उनको
उपयुक्त निर्देशन दे सकता है।
प्रश्नावली गुड तथा
हैट (Good & Hatt) के अनुसार
-‘‘सामान्यतः प्रश्नावली शाब्दिक प्रष्नों के उत्तर प्राप्त
करने की विधि है, जिसमें व्यक्ति को स्वयं ही प्रारूप में भरकर देने होते
हैं। इस विधि में प्रष्नों के उत्तर प्राप्त करके समस्या संबंधी तथ्य एकत्र करना
मुख्य होता है। प्रश्नावली एक प्रकार से लिखित प्रष्नों की योजनाबद्ध सूची होती
है। इसमें सम्भावित उत्तरों के लिए या तो स्थान रखा जाता है या सम्भावित उत्तर
लिखे रहते हैं।
साक्षात्कार इस विधि
में व्यक्तियों से भेंट कर के समस्या संबंधी तथ्य एकत्रित करना मुख्य होता हैं इस
विधि के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
इसमें दो व्यक्तियों में आमने-सामने मौखिक वार्तालाप होता है, जिसके द्वारा व्यक्ति की समस्याओं का समाधान खोजने तथा
शारीरिक और मानसिक दषाओं का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
गुड एवं हैट के शब्दों में - किसी
उद्देश्य से किया गया गम्भीर वार्तालाप ही साक्षात्कार है।
प्रयोग विधि ‘‘पूर्व
निर्धारित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन।’’ विधि में
प्रयोगकर्ता स्वयं अपने द्वारा निर्धारित की हुई परिस्थितियों या वातावरण में किसी
व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है या किसी समस्या के संबंध में तथ्य एकत्र
करता है।
मनोचिकित्सीय
विधि ‘‘व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करना।’’ इसविधि के द्वारा व्यक्ति
के अचेतन मन का अध्ययन करके, उसकी अतृप्त इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है। तदुपरांत उन इच्छाओं का
परिष्कार या मार्गान्तीकरण करके व्यक्ति का उपचार किया जाता है और इस प्रकार इसके
व्यवहार को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता हैi
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